भारत की झोली में ओलंपिक से कम मेडल गिरने पर खिलाड़ियों पर सवाल उठाना बंद कीजिये. भारत में प्रतिभाओं की लेशमात्र भी कमी नहीं है. कमी है तो साइंटिफिक ट्रेनिंग की. भारत में ओलंपिक के लिए भेजे जा रहे एथलीटों के चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाइये. आप जिस शहर से आते हैं, वहां के खस्ताहाल स्टेडियम का जायजा लीजिए. सोचिये, कि राज्य के खेल मंत्रियों ने प्रतिस्पर्धा की बुनियाद बनाने में कहाँ पर चूक कर दी.
ओलंपिक खिलाड़ियों के लिए भारत सरकार कितने पैसे खर्च करती है, उसका भी ब्योरा निकाल लीजिए. मैं जानता हूँ इस पोस्ट को पढ़ रहे बहुतेरे लोग मुझे निगेटिव घोषित करने आएंगे कि देखो चानू ने मेडल जीता और ये मोदी सरकार को कोसने लगा. इसे भारत की खुशहाली देखी नहीं जाती. लेकिन मैं कहूंगा कि नकारात्मक और घटिया सोच तुम लोगों की है.
टोक्यो ओलंपिक में ना जाने कितनी चानू, मैरीकाम, सिंधु भेजी जा सकती थीं. जिसके लिए हमने कोई योजनाबद्ध काम नहीं किया. खिलाड़ी आर्थिक तंगी झेलते रहे, संघर्ष से जूझते रहे. बिना रणनीति और कुशल प्रशिक्षण के अगर कुछ एथलीट मेडल ले आ रहे हैं तो ये सौभाग्य की बात है. ये तो और अच्छी बात होती ना जब ओलंपिक के लिए भारत के कोने कोने से खिलाड़ियों की तलाश की जाती. जिस दिन भारत में स्टेडियम सुधर जायेंगे. हर राज्य में एक गोल्ड मेडल लाने वाले सूरमा ओलंपिक में भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर देंगे.