आंदोलन कर रहे किसानों के साथ कौन सी बर्बरता नहीं की गई, किसानों पर पुलिस-प्रशासन-सरकार ने जुल्मो-सितम की सारी इंतेहा पार कर दी. जिस देश में पिछले तीन दशकों में लाखों किसानों ने सुसाइड कर लिया हो, उसी देश में किसानों पर अत्याचार करने के सभी तरीके आजमाये गए. पिछले साल इसी नवंबर में जब किसानों ने दिल्ली जाने का मन बनाया तो उनकी पुलिस से हिंसक झड़पें हुईं. दिल्ली बॉर्डर की ओर बढ़ने से रोकने के लिए उनके ऊपर वॉटर कैनन और आंसू गैस छोड़े गए. एक महीने बाद जब किसानों ने भारत बंद का एलान किया तो किसानों को आतंकी कहा गया, 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली कर रहे किसानों के बीच एक ऐसे उग्र व्यक्ति को साजिशन भेज दिया गया, जिसने लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराया और फिर आंदोलन को मीडिया के जरिए बदनाम करने की कोशिशों ने और तूल पकड़ लिया.
किसानों को सिंगर रिहाना, क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग का समर्थन मिला. तो वहीं भारत की दिशा रवि को पुलिस ने टूलकिट मामले में गिरफ्तार कर आंदोलन को रोकने की कोशिशों को जारी रखा. मीडिया में टूलकिट के मायनों को अलग अर्थों में समझाया जाने लगा. टूलकिट का अर्थ बस इतना ही है कि कोई किसी काम में किन रणनीतियों का सहारा ले रहा है. अगर किसान आंदोलन के समर्थन में कोई रणनीति बनाई गई तो इसमें गलत क्या था? भला हो दिल्ली हाईकोर्ट का जिसने दिशा रवि को जमानत देकर रिहा कर दिया. किसानों पर कोरोना फैलाने का आरोप भी लगा. करनाल पुलिस ने तो किसानों पर लाठीचार्ज तक किया. लखीमपुर खीरी में बीजेपी नेता का मन इससे भी नहीं भरा, तो उन्होंने किसानों पर अपनी थार चढ़ा दी.
करीब 800 आंदोलनरत किसानों की जान चली गई, महामारी आई, सर्दी आई फिर भी सरकार का मन नहीं पसीजा. भला हो चुनाव का, जिसमें नुकसान का अंदेशा लगाकर सरकार ने कानून वापस ले लिया.जिस कानून को सरकार किसानों को समझाने में आज खुद को असमर्थ समझ रही है. उस कानून को लागू करने के लिए सरकार ने इतना खून खराबा क्यों किया, शायद ये एक अनुत्तरित सवाल ही बनकर रह जाएगा.