‘रोशनदान’

प्रधानमंत्री मोदी! आपने नागरिकराज के लोकतांत्रिक अस्तित्व पर हमला किया है. गंगा के किनारे बसे वाराणसी को जीतने के लिए आपने कहा था- मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है. आज वही गंगा माँ अपने बेटों के शवों से पट गयी हैं. सनातन का पाखंड करने वाले आपके चापलूस सीएम योगी ने निर्ममता की सारीContinue reading “‘रोशनदान’”

रोशनदान! (22 अप्रैल की डायरी से)

इंसान की जीने के लिए जो बेचैनी है, वो बेइंतहा है! मरने के बिलकुल नजदीक पहुँचकर भी वो जीना नहीं छोड़ता. सब समझ बैठे हैं कि जीये जाना ही सबसे बड़ी हकीकत है लेकिन ये समझ सही नहीं है. सबसे बड़ा सच है मृत्यु. हम इस हकीकत से कभी इनकार नहीं कर सकते. श्रीमद्भागवत गीताContinue reading “रोशनदान! (22 अप्रैल की डायरी से)”

एक ‘अज्ञानी’ प्रधानमंत्री के भरोसे मत बैठिये!

2014 के बाद भारतीय राजनीति आस्था का विषय बना दी गई है. अनहद भक्तियुग! कोई प्रधानमंत्री के झूठे दावे के खिलाफ नहीं बोलेगा? नहीं तो उसे गालियाँ दी जाने लगेंगी. उनके अतार्किक और अज्ञानी बातों पर सवाल उठा दे तो उनके समर्थक जान से मारने की धमकियाँ देंगे! एनडीए सरकार की विफलताओं पर बोलने परContinue reading “एक ‘अज्ञानी’ प्रधानमंत्री के भरोसे मत बैठिये!”

नेहरू से एजेंडा सोनिया पर आया!

देश में सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव की मनाही है. नेताओं को सीधे तौर पर हेटस्पीच ना देने को कहा गया है, वे नहीं मानते. पत्रकारों के लिए मीडिया एथिक्स और लाॅ है. वे नहीं फाॅलो करते. एजेंडा और न्यूज़ में बहुत बड़ा फासला है. बता दिया गया कि पालघर हत्याकांड एक अपराध है और उसमेंContinue reading “नेहरू से एजेंडा सोनिया पर आया!”

कितने धनी होते हैं ना किसान!

अर्थव्यवस्था दो शब्दों से मिलकर बनी है- अर्थ और व्यवस्था. आजकल सबकी ज़ुबान पर एक ही बात. अर्थव्यवस्था गिर रही है. कुछ आंकड़े इस पर भी आये हैं कि ये कहां और कितनी गिर रही है. इसकी गिरावट को देखकर लगता है कि इसके उत्थान में खूब मेहनत नहीं हुई होगी क्योंकि पापा कहते हैंContinue reading “कितने धनी होते हैं ना किसान!”

कैमरे के सामने समाज सेवा की कैपचरिंग ?

मैं सोच रहा हूं कि अगर जोहन जान ने कैमरे का आविष्कार ना किया होता तो जिन जरूरतमंदों का लोग थोड़ा बहुत ख्याल रख रहे हैं, वे भूखों मर जाते. कोरोना संकट के दौरान ज्यादातर लोग खाने के पैकेट के साथ कैमरा ले जाना नहीं भूलते. समाज सेवा का ये तरीका नवजागरण काल के मसीहाओंContinue reading “कैमरे के सामने समाज सेवा की कैपचरिंग ?”

Opinion- आपका स्वाभिमान, गरीबों से भी कम है!

शहरों के चकाचौंध में लोग उन स्मृतियों को भूलते जा रहे हैं. जिन्हें पीछे मुड़कर देखने से भी मन कांप उठता है. पाई-पाई जोड़कर हमारे अभिभावकों ने हमें शिक्षा दिलाई. आज उस शिक्षा के मायने क्या रह गये हैं? उस शिक्षा का कत्तई ये मतलब नहीं था कि आप समाज में नफ़रत पैदा करें! उसContinue reading “Opinion- आपका स्वाभिमान, गरीबों से भी कम है!”

देशभक्ति बनाम भारत दुर्दशा!

ना तो एनआरसी का सिद्धांत बुरा है और ना ही नोटबंदी का था. समस्या इस बात की है कि इसे लागू करने का तरीका और जल्दबाज़ी बहुत ही खतरनाक रहा. सही तरीका ये होता कि पहले लोगों को इसका मकसद समझाया जाता. जितनी जल्दबाज़ी मौजूदा सरकार ने एनआरसी से अनभिज्ञ लोगों को डराने में किया,Continue reading “देशभक्ति बनाम भारत दुर्दशा!”

 गुजरात रेप: क्षेत्रवादी कौन है, नीतीश कुमार या फिर अल्पेश ठाकोर

साबरकांठा में 14 महीने की बच्ची के साथ रेप किया गया। जिसके बाद गुजरात पुलिस ने 300 लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है। लेकिन भारतीय राजनीति मासूम को इंसाफ दिलाने की बजाय क्षेत्रवाद की लड़ाई। कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर के भारत बंद के आह्वान के बाद अब गुजरात में उत्तरContinue reading ” गुजरात रेप: क्षेत्रवादी कौन है, नीतीश कुमार या फिर अल्पेश ठाकोर”

7 जुलाई की डायरी से

मुझे लगता है कि फायदे की फ़ेहरिस्त में राजनीति की रहगुजारी करने से बेहतर है कि पब्लिक सर्विस कर टीवी पत्रकारिता के अवसानकाल में भी नवजागरणकाल की ही तरह सामाजिक बदलाव के नए पुल बनाए जा सकते हैं. टीवी पत्रकारिता आजकल जिस प्रकार डिजिटल में तब्दील होती जा रही है, उससे साफ होता है किContinue reading “7 जुलाई की डायरी से”