Tested Negative!

आप सभी के प्यार और लगातार मिल रही दुआओं से आज मैं कोरोना से लड़-भिड़ कर वापस आ गया. इस बीच जो अनुभव किया उस पर बस इतना कहूंगा कि हमेशा किसी भी बिषम परिस्थिति से लड़ने के लिए खुद को तैयार रखिए. जिंदगी में हार मान लेना अंतिम विकल्प नहीं है. बस पाॅजिटिव आनेContinue reading “Tested Negative!”

रोशनदान! (22 अप्रैल की डायरी से)

इंसान की जीने के लिए जो बेचैनी है, वो बेइंतहा है! मरने के बिलकुल नजदीक पहुँचकर भी वो जीना नहीं छोड़ता. सब समझ बैठे हैं कि जीये जाना ही सबसे बड़ी हकीकत है लेकिन ये समझ सही नहीं है. सबसे बड़ा सच है मृत्यु. हम इस हकीकत से कभी इनकार नहीं कर सकते. श्रीमद्भागवत गीताContinue reading “रोशनदान! (22 अप्रैल की डायरी से)”

पापा का स्नेह-मीमांसा!

पापा काॅलेज से आज जल्दी आ गये. जाने क्या जुनून था कि भरी बारिश में ही शहर निकल गये. हमारे यहां किसी के कहीं जाने पर टोकने को अशुभ करार कर दिया जाता है. फिर भी अगर आपके पिता बरसात रुकने तक का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं, तो मन में स्वस्थ जिज्ञासा जाग हीContinue reading “पापा का स्नेह-मीमांसा!”

13 नवंबर की डायरी से

जो लोग अपने मूल्यों और सिद्धांतों के लिए किसी तरह का समझौता नहीं किये. अपने स्वाभिमान के साथ अडिग बने रहे. छोटे-मोटे हितलाभ को दरकिनार कर कठिनाई और चुनौतीपूर्ण जीवन व्यतीत किये. वे ही महामानव हैं. राजकुमार सिद्धार्थ के पास राजगद्दी थी, लेकिन उन्होंने कभी अपने वैचारिक आंदोलन और उद्देश्यपूर्ण खोज को अधर में छोड़Continue reading “13 नवंबर की डायरी से”

12 नवंबर की डायरी से

अगर किताबें पढ़ने की आदत एक बार बन गई तो आप इसके बिना रह ही नहीं पाओगे. बड़ी अजीब सी लत है ये भी. हर हफ्ते नई किताबें. हर समय एक नया विषयवस्तु जानने समझने की होड़. मानसिक फिटनेस के लिए भी अध्ययन और मनन बेहद जरूरी है. जो लोग पढ़ने के शौकीन हो गयेContinue reading “12 नवंबर की डायरी से”

पुरबिया लोक आध्यात्म: जहां बादल नहीं ‘भगवान’ बरसते हैं!

वैसे तो भारत की सभी लोग संस्कृतियां खास हैं लेकिन पूरबिया, लोक संस्कृति में पला बढ़ा. इस नाते इसे ज्यादा करीब से जानने समझने का मौका मिला. यहां बादल नहीं बरसते, भगवान बरसते हैं. सूखे की स्थिति में आप आसानी से किसी मुंह ये जरूर सुन पाएंगे कि ‘अब त बरस दा भगवान’. बच्चे भगवानContinue reading “पुरबिया लोक आध्यात्म: जहां बादल नहीं ‘भगवान’ बरसते हैं!”

24 सितंबर की डायरी से!

कमरे के घुप्प अंधेरे से मानो संधि कर लेना चाहता है मन कि अब उजाले के तिलिस्म में मत ले जाना. उन उजालों से भरोसा उठ चुका है. इस घने काले अंधेरे में मन की व्यथाएं कुछ हद तक शांत हो जाया करती हैं. फिर मन का एक तंतु घर पहुंच जाता है. अम्मा केContinue reading “24 सितंबर की डायरी से!”