पाकिस्तान में स्पोर्ट्स को लेकर मौजूदा अवनति इसे दक्षिण एशियाई देशों के उस समुदाय से बहुत दूर कर चुकी है जिसमें इन देशों सहित इसे दुनिया के सबसे बेहतर हॉकी और स्क्वॉश एथलीट देने का माद्दा रखने वाला कहा जाता रहा है. लेकिन मौजूदा हालात ये है कि ओलंपिक में इसके एक भी एथलीट क्वालिफाई नहीं कर पायें.
जिस देश में क्रिकेट आज भी अपनी लोकप्रियता बनाये रखे है, अगर 20 करोड़ आबादी वाला पाकिस्तान क्रिकेट के इतर ज्यादातर खेलों की लोकप्रियता बनाये रख पाने में सक्षम नहीं हो पाता है तो उसे अपनी उन सफलताओं और सक्षमताओं की ओर एक नजर जरूर ड़ालना चाहिए जिसमें 1980 और 1990 के दशकों में उसनें अपने प्रतिभाओं का लोहा दुनिया से मनवाया था.
नष्ट हो रहे जिम और खेल के मैदानों की कुछेक हिस्सों में पाकिस्तानी एथलीट पुराने खेल के सामानों और अविकसित ट्रेनिंग नियमों के साथ जूझतें दिखाई दे रहे है जो इनको अपने नये और वैज्ञानिक तकनीकि से विकसित उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे विदेशी विरोधियों का सामना करने से दूर रख रहे है.
पाकिस्तान में ओलंपिक में कामयाबी महिला एथलीटों के लिए तो बहुत दूर की कौड़ी है क्योंकि ज्यादातर लड़कियों का सरोकार उन जगहों से है जहां पर आज भी जवान लड़कियों को उनके परिवारों द्वारा लोगों के बीच में अभ्यास करने के लिए मनाही है और कुछेक जिनके साथ उनका परिवार खड़ा है उन्हें समाज के उन पाबंदियों पर रोष है जो ये कहते हैं कि लड़कियों को पब्लिक में प्रैक्टिस करना सही नहीं है.
2010 में कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान गोल्ड जीतने वाले पाकिस्तानी रेसलर इनाम भट्ट ने कहा कि ‘हम लोग दुनिया के मुकाबले में बहुत दूर खड़े हैं’ हमारा बजट, ट्रेनिंग और उपलब्ध सुविधायें ना के बराबर है. हम कैसे प्रतियोगिता कर सकते है’.
भट्ट अन्य एथलीटों की तरह ही कहते है कि ‘इसका आने वाला कल बहुत ही निराशाजनक है जब तक कि सरकार खेलों के लिए आर्थिक सहायता देना प्रारम्भ नहीं कर देते.
पाकिस्तान ओलंपिक एसोसिएशन के प्रेजिडेंट आरिफ हसन के अनुसार ‘सात एथलीट प्रतिभागी जो अगलें महिने में रियो ओलंपिक पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने जा रहे होते, उनको क्वालिफिकेशन के दौरान ‘नो चांस’ मिला जो मेडल्स जीतने के लिए गए थें’. आगे उन्होंने कहा है कि ‘वे ज्यादा या कम जो भी है और प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जाते है और अनुभव प्राप्त करते है. भरोसा रखो वे आगे बेहतर कर पायेगें.’
1980 के दशक वाली ट्रेनिंग के नियम-
वे सभी जो पाकिस्तान में स्पोर्ट्स के बेहतरी के लिए काम कर रहे है काफी निराश हैं.
मूलभूत व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है, स्कूली बच्चें जो क्रिकेट के अलावा कोई और स्पोर्ट खेलतें हो बहुत कम है, और दिग्गज एथलीट कभी-कभार ही प्रतियोगिता में बने रह पाते हैं जिसमें उन्हें महारत हासिल हैं. फेडरेशन उन्हें विदेश भेजने का भार नहीं संभाल सकती है.
वकार अहमद, पाकिस्तान के स्पोर्ट्स बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर जिनका कहना है कि फेडरेशन अच्छे कोच को नहीं रख पा रही हैं जो विकसित ट्रेनिंग तकनीकी से लैश हो और 1980 से चले आ रहे अविकसित तकनीकी से उबरा जा सके.
एथलीट पूरी तरह से हताश हैं क्योंकि,. ‘कोच शिक्षित नहीं हैं और वे 30 साल से चले आ रहें अविकसित नियमों के द्वारा इन्हें ट्रेनिंग दे रहे हैं. अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी रहती है तो बहुत कुछ किया जा सकता है लेकिन नई तकनीकी के बिना हम नहीं जीत सकते हैं’.
हॉकी का अंत जो पाकिस्तान का राष्ट्रीय खेल है, कितना दुखद है जब इस देश को इस खेल में 1960 और 1994 ओलंपिक में गोल्ड का तमगा मिलता रहा हो.
पाकिस्तान के हॉकी टीम के कोच ताहिर जमान का कहना है कि सरकार के सपोर्ट की कमी की वजह से युवा एथलीट हॉकी जैसे खेलों में बहुत दिन तक नहीं रह पायेंगे क्योंकि हॉकी के टॉप प्लेयर की मौजूदा हालात ये कि उसे 10 डॉलर मिल रहा है. पाकिस्तानी क्रिकेटर को 5000 डॉलर हर महिने दिए जाने के बाद स्पॉन्सरशिप डील के लिए अतिरिक्त पैसे भी मिल जाया करते है.
जमान 1992 के ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक विजेता है. जिनका कहना हैं कि अब नए खिलाड़ियों को हॉकी से उतनी दिलचस्पी नहीं है. सरकार खिलाड़ियों के लिए रेगुलर जॉब भी ऑफर कर रही है.
लाहौर में 45 हजार सीटों वाली हॉकी स्टेडियम के खाली रहने पर पाकिस्तान के हॉकी प्लेयर हसन अनवर है कि परिवार के बड़े लोगों का कहना है कि अगर आपको अपना भविष्य बनाना हो तो कभी भी हॉकी ना खेलों.
जिस तरह पाकिस्तान से हॉकी छिन गई ठीक वही परिस्थितियां स्क्वॉश को लेकर भी है. जहां युवा खिलाड़ी 1980 के दिग्गज जहांगीर खान को महानतम मानते है लेकिन उनके समान साहसपूर्ण प्रदर्शन नहीं दिखा पा रहें.
महिलाओं को सामाजिक पाबंदियां
पाकिस्तान की चर्चित स्क्वॉश खिलाड़ी मारिया तूरपाके वजीर जिनकी इस खेल में विश्व रैंकिंग 65 है. जो आज विदेश में ट्रेनिंग कर रही है, वजह ये है कि अफगानिस्तान के समीप जनजातीय और पुरानी प्रथाओं को आज भी सामाजिक अंग बनाये रखा गया हैं. जिसमें उसे एक लड़के की तरह ड्रेसिंग तक की मनाही थी.
पाकिस्तान के ओलंपिक चीफ हसन का इस पर कहना है कि रूकावटें कम हो रहा है लेकिन महिलाओं के लिए इस बात का पछतावा हैं कि सामाजिक बदलाव काफी धीमी गति से हो रहा है.
नीलम रियाज को साइक्लिंग में काफी दिलचस्पी थी लेकिन उसके पिता ने उसकी ट्रेनिंग पर रोक लगा दी. इस बात पर की ट्रेनिंग के दौरान लोग नजर गड़ाये रहते है. जिसके बाद उसने कराटे की ट्रेनिंग ली. इस बात से बेफिक्र हो गई कि उसे पुरूषों से कैसे अपने आप को बचाना है और अब अंत में जाकर वो वेटलिफ्टिंग तक ही अपने आपको रख पाई.
आम तौर पर पाकिस्तान में महिलाए स्पोर्ट्स को लेकर हतोत्साहित दिखाई देती है और कोच के द्वारा भी प्रताड़ित की जाती है. ऐसा कहना है रियाज का, जो पाकिस्तान की पहली ऐसी महिला वेटलिफ्टर है जिन्होने विदेश में हिस्सा लिया हो और कामयाबी हासिल की हों. आगे उन्होंने कहा कि आज उनका परिवार उनके साथ है जब वो वेटलिफ्टिंग में अपना प्रदर्शन दिखा रही है.
लाहौर के फीके लेकिन चमकीले जिम में जिसमें दिवारों के पेंट उतर चुके है. खिड़किया ध्वस्त हो चुकी है. मकड़ी का जाल गीले छत से जकड़ा हुआ है. वहां रियाज 16 साल उम्र की लड़की इकरा चानजैब को वेटलिफ्टिंग सीखा रही हैं. जो वेटलिफ्टिंग में अभी बिल्कुल नई है.
चानजैब की कहानी भी रियाज की ही तरह हैं जो बॉस्केटबॉल खेलना चाहती थी लेकिन उसके चाहत को भी सामाजिक बंधनों का सामना करना पड़ा और उसे ये कहकर मना कर दिया गया कि उसका घर बाहरी लड़को से भरा पड़ा रहता है और खुला है. उसके बाद उसका एक सरीफ भाई उसकी सुरक्षा की हिदायत देकर उसे उसकी इच्छा से बाहर कर दिया. जिसके बाद उसके लिए बास्केटबॉल एक सपना हो गया और उसे इन् डोर वेटलिफ्टिंग चुनना पड़ा.
चानजैब को कहना है कि ‘मेरी तरह बहुत सारी लड़कियां है जो इस नाते ही नहीं आ पा सकती है क्योंकि उन्हें पारिवारिक दबाव का सामना करना पड़ रहा हैं. मेरे बहुत सारी दोस्त है जो स्पोर्ट्स में दिलचस्पी रखती है लेकिन उनके परिवार वाले उन्हें आने नहीं देना चाहते है.’