भारत में जो भी जननेता हुए, वे अपने फैसलों के लिए जाने जाते रहे है. उन फैसलों से जनहित और बदलाव के लिए काम किए जाते थे. लोग उनका स्वागत करते थे और उन संघर्षो में उस नेता के साथ खडे़ भी रहते थे.
भारत में साम्राज्यवादी व्यवस्था में भी जब लोगो के साथ ज्यादती की जाती थी, जागरूक लोग उसको बर्दाश्त नहीं करते थे. कांग्रेस की स्थिति और जो कुछ भी वजूद मौजूदा वक्त में बच पाया है, उनका जिम्मेदार कांग्रेस के वे नेता ही थे जिन्होंने चुनावी वादों और अपने फैसलों को आधा अधूरा छोड़ दिया.
यही हालत आज देश की उन पार्टियों का भी है जिसने अपने सिद्धांतों को ताक पर रखा. जनता के हालात को सुधारने की बजाय और बढ़ाते गये.
अटल बिहारी बाजपेयी को लोग क्यों याद रखते है? इसलिए नहीं कि वे अच्छा बोल पाते थे. लोग जो सुनने की उम्मीद में बैठे होते थे, ऐसा बोलने के नाते भी बाजपेयी सरकार को नहीं याद रखा जायेगा. बाजपेयी ने कांग्रेस की योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने की कोशिश की. देश स्वावलंबन की तरफ कैसे मोड़ा जायेगा, इसकी फिकर बाजपेयीजी को होती थी. स्वर्णिम चतुर्भुज योजना और आज के बुलेट ट्रेन में बस इतना अंतर है कि स्वर्णिम चतुर्भुज योजना भारत के उन समस्त लोगो को फायदा कर रही है जो बुलेट ट्रेन नहीं करेगी.
क्या इस बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए कि संविधान ने भारत के लोगो को समानता का हक दिया है. किसान और पूंजीपतियों को दो आंखों से देखने वाली सरकार उस सरकस से कम नहीं है जो कम पैसे वालों को अच्छी कुर्सी नहीं देती क्योंकि उसके धंधे को सबसे ज्यादा फायदा दौलतमंदों से है.
वर्तमान प्रधानमंत्री अपने फैसलों के लिए कैसे याद रखें जायेंगे; ये देखने वाली बात होगी. लेकिन इनके फैसले चुनावी माहौल में अपनी साख बचाने के लिए लागू किए गए थे. उनके फैसलों ने लोगो को हमेशा आहत किया है.
जिस स्वच्छ भारत अभियान के लिए प्रधानमंत्री ने झाडू उठाया और गाँधीजी का हवाला देते हुए साफ-सुथरा रहने की बात कही. वो सिर्फ दिमाग की उपज थी, बदलाव नहीं आया. हाँ इतना तो हुआ ही कि पंकज शर्मा के एक रिपोर्ट में ये देखने को मिला कि जिस जगह पर प्रधानमंत्री मोदी ने सफाई की थी वहीं पर उनके पार्टी के कार्यकर्ता पेशाब करते पाये गये.
स्वच्छ भारत का यहीं हश्र करना था तो फिर जनता की जमा पूंजी पर फैसले सुनाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलने वाला है. गंगा समेत तमाम नदियों की सफाई में आपने जितने पैसे खर्च कर दिये उसका खयाल आपको होता तो आप भाई-बहनों कहकर ऐसा झांसा देते रहने को समझ पाते.
सुनियोजित ढंग से कोई योजना आपके कैबिनेट ने बनाया ही नहीं. आप धारा 370 को हटाकर देश की अखंडता को को विनष्ट होने से बचाने के अपने ही दांवे को भूलते कैसे? श्रीनगर दंगा, कश्मीर घाटी विवाद, कश्मीरी पंडितों के पलायन का मसला और राष्ट्रवाद का झूठा सच आपको बेनकाब करता है.
आपकी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी भारत अपने सपूतों के लहू को देख देखकर रोता बिलखता रहा. आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक ने भी 65 लोगो को मार डाला, ये कौन सी सर्जिकल स्ट्राइक थी जिनसे अपने ही मारे जा रहे थे. ग्रेवालजी के मरने के बाद आपके वन रैंक वन पेंशन की पोल खुल ही गई.
आपको ना देश के बेरोजगार युवाओं से हमदर्दी है और ना ही उन लाखों किसानों से जो आज बदहाली की स्थिति में है. दरअसल आप सबसे पहले भाजपा के कार्यकुशल नेता है उसके बाद भारतीय. अगर आप पहले भारतीय और उसके बाद अपनी पार्टी के संरक्षक बनते तो भारतवासियों की आत्मा के साथ ऐसा खेल नहीं खेलते.
ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए आपका काम अनुशासित नहीं है. कभी भिलाई इस्पात केन्द्र को आपके ही वरिष्ठ पदेन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे लोकतंत्र का मंदिर कहा था. आज आप गंगा आरती कर लोकतंत्र की आरती भूल बैठे.
तमाम अर्थशास्त्री कह रहे है कि नोटबंदी से कालेधन और भ्रष्टाचार का किवाड़ खडखडाया जा सकता है, लेकिन उखाड़ा नहीं जा सकता. दुर्भाग्य ये है कि वकुलों की सभा में हंस बैठकर कर क्या लेगा.