पाकिस्तान के राष्ट्रपति का भारत पर यह आरोप लगाना कि इन दोनों देशों के बीच की होने वाले बातचीत में भारत ने अपना पैर पीछे हटाया, बिल्कुल गलत.
आपने संसद में ऐसा क्यों कहा
महनून हुसैन संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित कर रहे थे, इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिसको सुनकर आप हैरान हो जायेंगे. उन्होंने कहा कि पठानकोट हमले के बाद संयुक्त जांच के लिए पाकिस्तान ने एक पहल करने की सोची थी जिसपर भारत ने पानी फेर दिया.
बातचीत के रद्द होने में कश्मीर को क्यों ला दिये
कोई पाकिस्तानी भारत का बात कर रहा हों और कश्मीर को भूल जाये ऐसा संभव है क्या, हुसैन जी को लगता है कि भारत पाकिस्तान की बातें इसलिए भी नहीं हो पाती क्योंकि कश्मीर का जो उपमहाद्वीपीय मुद्दा, विभाजन के दौरान सुलझाई नही जा सकी थी वह है. उनके हिसाब से क्षेत्रीय तनाव भी इसीलिए बनता है क्योंकि कश्मीर हमें ना मिलना हमारे साथ नाइंसाफी है.
सह्रदयता की तो हद ही पार कर दिया आपने
उन्होंने अपनी सह्रदयता दिखाने में भी कोई कोताही नही बरती. कहा कि जब भारत ने बात करने से इंकार किया तो हम पठानकोट हमले को लेकर बेहह चिंतित थे. कश्मीर उनके हिसाब से भारत का हिस्सा नहीं है बटवारे का अधूरा एजेंडा है. इससे साबित ये होता है कि इनकी कश्मीर को अपना बनाने की चाहत इस हद तक बढ़ गई है कि ये कश्मीर पाने के लिए किसी हद तक जा सकते है. कश्मीर के लालच ने इनको इतना गिरा दिया हैं कि जिस दौरान ये पठानकोट आतंकी हमले का जिक्र कर रहे होते है उसी समय इन्हें कश्मीर की याद आ जाती है. राष्ट्रपति की बातों से साफ जाहिर हो रहा है कि पाकिस्तान का भारत को लेकर क्या नियति है और पठाकोट हमले को लेकर कितनी सहानुभूति.
इन बातों के इतर उन्होंने कश्मीर मुद्दों को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की मदद लेने की अपनी मंजूरी देते हुए कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान तब तक नही होने वाला जब तक इसका सारा जिम्मा कश्मीर की जनता को और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को नही दिया जाता है. उनको लगता है कि कश्मीर की जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है, इस बाबत उनसे पूछना चाहिए की आपको भारत के एक राज्य पर ऐसी बेबुनियादी बातें करने का हक़ किसने दिया. क्या उनको लगता है कि कुछ घुसपैठियों का सहारा लेकर वो भारत की अखंडता पर सवालिया निशान उठा सकते है तो ये उनकी गलतफहमी है.
ऐसा केवल आपको लगता है
आपको ये जानकर अचरज होगा कि उनके मुताबिक पाकिस्तान एक शांतिपूर्ण देश है जिसकी चाहत है कि वो अपने विदेश नीति में कोई अड़चन रखना नही चाहता और सभी देशों के साथ मित्रता और भाईचारे के साथ रहे. कौन करेगा इनकी ऐसी बहकी बातों पर यकीन.
बातचीत से आपने ही झाड़ा पल्ला
26 अप्रैल की विदेश सचिव स्तर की वार्ता पाकिस्तान द्वारा ही रद्द की गई और आप ने बड़ी आसानी से कह दिया कि सारी गलती भारत की है. जैश-ए-मोहम्मद को पनाह देना भाईचारा तो कभी भी नहीं हो सकता. अगर आपको भारत से सहानुभूति होती तो आप कभी भी कश्मीर का मुद्दा उठाने से पहले एक बार सोचते जरुर.