देश के ऐतिहासिक, सामाजिक, भौगोलिक विरासत, संस्कृति और सभ्यता को सही ढंग से जाने बगैर कोई भी नेता देश की भलाई नहीं कर सकता.
जनाब आप किस हक से वातानुकूलित कमरों में बैठकर फुटपाथों पर जीवन जीने वालों के लिए योजनाए बनाते हैं. आइए जनाब देखिए भारत को. क्योंकि महात्मा गाँधी को दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद उनके राजनीतिक गुरू गोपालकृष्ण गोखले ने कहा था कि राजनीति की शुरुआत करने से पहले भारत को देखो. भारत की विविधता को समझने के लिए भारत भ्रमण करो और तय करो कि क्या करना हैं.
शायद राजनीति का सही अर्थ यहीं था कि आप समस्याओं को अपनी नजर से देखें और यह सुनिश्चित करें कि लोग क्या झेल रहे है.
लेकिन शायद अब राजनीति के मायने बदल गये हैं. राजनीति में प्रवेशद्वार तक ही ईमानदारी बरती जा रही है अन्दर पहुँचने के बाद तो जनता के धन को कैसे परंपरागत रुप से घोटाले में तब्दील करना चाहिए सारा दिमाग तो यहीं पर लगा दिया जाता हैं.
आपको तो हमेशा की तरह लग ही रहा होगा है कि अशिक्षा और बुनियादी जरुरतों को झेल रही जनता आपके झांसे में आ ही जाती हैं तो फिर जरुरत क्या है ईमानदार बनने की. जितना मन हो उतनी बेमानी करते रहिए. और हाँ मौज किजिए जनता के पैसों से. कर्फ्यू लगवाइए, मजहब का नाम लेकर करवाते रहिए कत्लेआम. क्योंकि जनता के भरोसे से खेलना ही तो आज की राजनीति है.