(परिवारवादी शहंशाही)
आजाद भारत में लोकतंत्र आया, लेकिन नहीं आया. वंशवाद और राजशाही रह गई. संसदीय लोकतन्त्र में भी राजकुमार रानी के कोख से पैदा होने वाले बने. परिवारवादी पक्षपात का शुभारंभ भले नेहरू ने किया हो. लेकिन अब इससे बची रहने वाली कोई पार्टी शायद नहीं होगी. यहां बड़ी पार्टियों की बात की जा रही है. इंदिरा गाँधी वंशवादी परंपरा का आजाद भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रथम साम्राज्ञी बनाई गई थी.
पार्टी का नाम समाजवादी पार्टी, लेकिन समाजवाद से दूर. परिवारवाद और जातिवाद का खुला समर्थन करने वाली राममनोहर लोहिया के सिद्धांतों को ताक पर रख चुकी है.
लालूजी भी नेहरू और मुलायम के पदचिह्नों पर चलने वाले शहंशाह बन ही गए.
अब बात एनडीए की भी. जो सिद्धांतों के लिए ‘जान जाई पर बचन न जाई’ के राह पर चलने का दावा करती है.
परिवारवाद से भाजपा भी उबर नहीं पाई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिपरिषद में 26 फीसदी मंत्री वंशवाद का चेहरा है. ऐसा कहना कंचन चंद्रा का है जोकि न्यूयार्क विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञानी है.
आइए समझते है इस फेहरिस्त को.
१. राजनाथ सिंह के साढू अरुण सिंह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव है और उनके बेटे पंकज सिंह लगातार दो बार से उत्तरप्रदेश बीजेपी के महासचिव.
२. विजय राजे सिंधिया की पुत्री वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री है और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह लोकसभा सदस्य और बहन यशोधरा राजे मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री है.
३. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह सांसद है.
४. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद और बीसीसीआइ के अध्यक्ष है.
५. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह सांसद है.
६. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा के पुत्र बी. वाइ. राघवेन्द्र पूर्व सांसद और अभी विधायक है.
७. महाराष्ट्र में बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे प्रमोद महाजन की पुत्री पूनम महाजन सांसद है तो उनके बहनोई दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की एक बेटी प्रीतम मुंडे सांसद हैं तो दूसरी बेटी पंकजा मुंडे राज्यसरकार में वरिष्ठ मंत्री.
राजनैतिक टीकाकार जयशंकर गुप्त लिखते हैं कि ‘पिछले तीन दशकों में राजनीति में खानदानशाही की हवा कैसे मजबूत होती गई है, इसकी गवाही आंकड़े भी देते हैं. ब्रिटिश लेखक पैट्रिक फ्रेंच ने 15वीं लोकसभा के 542 सदस्यों की पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किया तो 156 यानी करीब 29 फीसदी सांसद वंश परंपरा, सात सांसद राज परिवारों और 35 व्यावसायिक घरानों से थे.
दरअसल, राजनेता चालाक नहीं, लोग चुप है. जिस दिन ये चुप लोग बोलेंगे. सन्नाटें चीख उठेगी. राजशेखर व्यास के स्वर में स्वर मिलायें तो,
चुप्पियां जिस दिन खबर हो जायेगी,
कई हस्तियां फिर दर बदर हो जायेगी.