वर्तमान राजनीति में गाय(गोमांस), हाथी(चुनाव निशान), मगरमच्छ(राजा भैया के तालाब वाला) और अब गधा(अखिलेश के मुताबिक गुजरात वाला), इन तीनों प्राणियों से ज्यादा सहनशील है. गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है. विशालकाय हाथी भले नन्हीं सी चीटी से हार जाये, मगर जब बौखलाती है तो बड़े-बड़े लोग भाग जाते है. मगरमच्छ की ताकत तो जगजाहिर है जलीय जंतु इससे डरे-सहमे रहते है.
बेचारा गधा कितना सहता है. हिप्पो-हिप्पो करता रहता है,.चलता रहता है. गधे से याद आया कि एक किताब है व्यंग्यात्मक. उसे जरुर पढ़िएगा. नाम आप ही पढ़िए ‘मै एक कुंवारा गधा हूं’.
खैर सपा के युवा नेता का बयान थोड़ा अटपटा है मगर तीर का कमान से निकल जाना और बयान का मुँह से; कभी वापस नहीं होता. कान लगाकर सुनिए- ‘गुजरात में टीवी पर गधों का प्रचार किया जाता है और वहां के लोग यूपी में आकर श्मशान और कब्रिस्तान की बात करते है. अमिताभजी से गुजारिश करता हूं कि गधों का प्रचार करना बंद करें.’
अभिजीत पाठक (विश्लेषक)