कोई कवि/शायर इन दोनों शब्दों के व्यावहारिक या सैद्धांतिक प्रयोग से बच नहीं पाये हैं. इस बात पर भी बहस होनी चाहिए कि आखिरकार कोई भी नैसर्गिक प्रतिभा से लैस धुरंधर इन दोनों शब्दों का अभ्यस्त क्यों हो जाता है.
ज्यादातर जवाब सटीक आएंगें इसपर. मगर क्या सुखन(साहित्य) संयोग श्रृंगार के रचनाकार के साथ इस बात का समझौता करा सकती है कि वो बाद में जाकर वियोग में घुलमिल नहीं जाएगा.
मगर जब आप जाॅन एलिया को पढ़ते हैं तो उस समय जाॅन एलिया का अनुभव किसी संयोग के मजे को किरकिरा कर देती है.
हिज्र(जुदाई) का साहित्य भी अगर असलियत की पैरवी करता है तो लोग उसकी तरफ आकर्षित जरुर होते है.
हिज्र के भी बहुत करीबी है. अपने समय की सही तस्वीर छांपने वाले साहित्यकार अपने हिज्र से भी एक लकीर खींच देते है. जिसका अनुसरण किया जाता था.
भूलकर भी किसी के हिज्र की पुरानी खींची लकीर के फकीर ना बनें. आपको अपना हिज्र ईमानदारी से लिखना होगा. लोग आज नहीं तो कल सही. आपको आपके नाम से जानेंगे.
विसाल हिज्र को पैदा भले करें लेकिन हिज्र का सुखन विसाल से गुलामी करवाता है.
#ओजसमंत्र