काल का ये ज्वार-भाटा,
अपने तेवर पर है मुस्कराता.
कविता के शस्त्र से लड़ने वाले योद्धा को गिरा पाएगा!
राजधर्म के जड़ को कैसे उखाड़ पाएगा.
असमर्थ है मृत्यु महारत्न को ले जाने में,
इस चमन में गुलजार हो चुके भारत योद्धा को.
आखिर कैसे रोक पाएगा,
राष्ट्रभक्ति की बहती हुई धारा को.
शाश्वत रहेगा, गुंजायमान होगा!
मुखारबिंद से बार-बार फूटेगा भाषानाद;
ध्वनियां आसमान में उमड़-घुमड़ विचरेगा.
जब तक सिंधु में उठता रहेगा ज्वार,
नई रार ठानने को निकलते रहेंगे अटलजी!
#ओजस