बात 2003 की है. ये वही साल था; जब मेरे घर में ज्ञात पीढ़ियों में पहली बार बंटवारा हुआ था. मेरी उम्र उस समय नौ साल की थी. मुझे थोड़ा धुंधला ही सही लेकिन सब याद है. नवंबर का महीना था. अगले साल मई के महीने में ही मेरी बड़ी बहन यानी ब्यूटी दीदी की शादी होने वाली थी. हमारे तीन बाबा थे. जो हमारे थे; उनको तो सिर्फ तस्वीरों में ही देख सका. बाकी दो लोगों में एक बिचले बाबा जिनका जिक्र मैं यदा-कदा अपनी डायरियों में करता रहा हूँ; वे थे. और सबसे छोटे बाबा मुंबई में रहते थे. सबका जिक्र शुरूआत में इसलिए कर दे रहा कि आपको पूरा वाकया समझने में आसानी हो.
तड़के सवेरे बिचले बाबा कचहरी जाने के लिए अपना बैग उठाये ही थे. तभी मेरी बड़की माई यानी बड़ी दादी उनके लिए चूड़ा;दूध-चीनी का हल्का नाश्ता लेकर पहुंचती हैं. अमूमन; बिचले बाबा अपनी बड़ी भाभी की किसी बात को कभी ना सुने ऐसा होते मैंने देखा ही नहीं, लेकिन उस रोज बाबा ने कुछ भी खाने से इंकार कर दिया था. माई फिर भी बिचले बाबा से ये कहकर अंदर चली गई. कि बिना खाये घर से ना निकले.
ये तीसरा दिन था जब एक मामूली विवाद के बाद घर में चूल्हा नहीं जला था. विवाद था; घर में दो चूल्हे बनाने को लेकर. बड़की माई ने इस बात से साफ इंकार कर दिया था. लेकिन बिचले बाबा पर दोनों पक्षों से लगातार दबाव बनाये जा रहे थे. शायद इसी तनाव को लेकर उस रोज भी बिचले बाबा नाश्ता करने से इंकार कर रहे थे.
खैर; बिचले बाबा से हम सभी डरते बहुत थे. लेकिन उनके गुस्से और दुलार का सामंजस्य इतना सहज था कि उनके पास जाने में कभी हिचकते नहीं थे. बिचले बाबा ने दो चम्मच भी खाया नहीं था कि मेरी नज़र उस पर चली गई. मैंने बाबा से बस इतना ही कहा- बाबा भूख लगल बा हो. और वे पूरी कटोरी मुझे थमा बैग उठाकर कचहरी निकल गये. बड़की माई तभी अचानक अंदर से आ गई. और उन्होंने बाबा का नाश्ता मुझे खाते हुए देख लिया. मैं कुछ समझ सकता कि वो गुस्से से भर गई. तोहने के कुछ ना मिलत हवे. ओनके अगवै क मिलल हवे. मैंने उनसे कहा कि माई तीन रोज से कहाँ कुछ बन रहा. जो हल्का फुल्का बनता है; उससे भूख नहीं जाती. दादी भावुक हो गई लेकिन उनका गुस्सा शायद अब भी खत्म नहीं हुआ था!
वो अमूमन कभी हाथ नहीं उठाती थी और पापा जब गुस्से में मेरी पिटाई करने आते तो वही बचाती भी थी. लेकिन शायद अपने लाडले देवर के भूखे होने की वजह से वो मुझ पर भड़के जा रही थी. उन्होंने मुझे उसी ताव में एक तमाचा दे मारा. मैंने चूड़े और दूध से भरी कटोरी बैठक में दे फेंकी. तभी अम्मा आ गयी. अम्मा; माई को अम्मा ही बुलाती थी. उन्होंने पूछा- अम्मा का भयल हव. उन्होंने कहा- बिचलकू के आगे क खायल दुश्वार कैले हवे तोहार पूत. शाम के समय घर में माई ने सबको हटाकर बहुत दिनों बाद रसोई की शोभा बढ़ाई और हम सबने छककर खाना खाया.
दूसरे दिन सुबह दिग्विजय राय के पिताजी घर आये. उन्होंने पापा और छोटे बाबा को बिठाकर समझाया कि आपके घर का क्षेत्र में बड़ा नाम है. और लोग आपके परिवार सरीखे बनने की कोशिशें करते हैं. जो भी मतभेद हैं; उन्हें भुलाकर और मिलकर रहिए. पापा ने अगले साल दीदी की शादी की वजह से उनकी बातों को स्वीकार कर लिया लेकिन छोटे बाबा ने कहा सभी लोग एक में रहेंगे तो मैं एक रुपया भी खर्च नहीं करूंगा. पापा ने इस पर भी हामी भर दी. लेकिन शाम को छोटे बाबा ने गुंजन भैया को गाय की देखरेख ना करने की वजह से बहुत डांटा और मारे भी; जिसपर अम्मा ने कह दिया कि आपके जो मुंबई वाले पोते हैं; उनसे करवा लीजिए कभी.
फिर क्या था; उस रोज मुंबई वाले बाबा के परिवार ने अलग खाना बनाया खाया. बड़की माई की आंखें उस रोज ऐसे भरभरा रही थीं मानो कि उनसे किसी ने उनका सर्वस्व छीन लिया हो. इस घोंसले को उन्होंने तिनका-तिनका चुनकर तैयार किया था; जो आज पूरी तरह बिखरा पड़ा था.