((बिहार को मैं कितना जान पाया हूं नहीं पता. लेकिन दुनिया को 9 के आगे की गिनती सिखाने वाले आर्यभट्ट से लेकर राजनीति के प्रबोध बाबू जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि के तौर पर ये सरजमीं पूजनीय है. और मैं ये बिना रूके कह सकता हूँ कि जिस पथ पर मेरे कदम आज चलायमान हैं यानी पत्रकारिता और लेखन, उसकी बागडोर निसंदेह बिहारियों के हाथ रही है और आगे भी रहेगी. चाहे मेरे सबसे पसंदीदा एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी की बात हो या फिर दिनकर की कविताओं की! ये दोनों मेरे प्रेरक मनों में जिज्ञासा का संचार करते रहते हैं अनवरत और लगातार.))

सौभाग्य से पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट के ब्राॅडकास्ट जर्नलिज्म बैच में बिहार की उर्वरा धरती से मुझे निशांत भारद्वाज जैसा दोस्त मिला. जिसका थोड़ा बहुत साथ मेरे लिए बहुत ही फ़ायदेमंद रहा. निशांत में एक प्रगुण है कि वो अपनी मौजूदगी में किसी का मोराल डाउन नहीं होने देता. बीजेपी का नारा तो बाद में आया लेकिन बैच में निशांत का एकमात्र विजन रहा. सबका साथ, सबका विश्वास.

निशांत के लक्षण से साफ लगता है कि अगर ये पत्रकार नहीं बनता तो एक अच्छा नेता बनकर उभरता. खैर, अभी भी बहुत सारी संभावनाएं हैं. निशांत भारद्वाज ने रवीश कुमार की किताब इश्क़ में शहर होना पढ़ने को दिया. मैंने कहा- ‘नहीं यार, अभी सिलेबस खुद ही इतना लंबा-चौड़ा है. ये साहित्यिक किताबों का रोग नहीं पालना मुझे. निशांत ने कहा – अबे पढ़ो. सिलेबस पढ़ने से कुछ नहीं होता. मैंने निशांत का कहा माना और वो पहली किताब थी, और आज पढ़ने का चस्का ऐसा लगा है कि पढ़ना ही मेरी सबसे बड़ी प्रवृत्ति बन चुकी है.

सही कहा था निशांत भारद्वाज ने OUT OF THE BOX THINKING भी कई बार हमारे मार्ग प्रशस्त करता है. मैंने अब तक जितना पढ़ा, उससे मुझे एक बेहद खास तजर्बा हो चला है कि उत्तर आधुनिक पीढ़ी के लेखकों में ठहराव बेहद कम है. प्रगतिशील चेतना के लेखक कवि और प्रयोगवाद और जनवाद के पक्षधर पत्रकार और लेखकों ने अपने समय में साहित्यिक अनुदान के रूप में वक्त को थमा सा दिया. जो आज किंचित मात्र ही बच सका है.

वैसे तो निशांत के साथ गुजरा हरेक लम्हा खास अनुभवों से लबरेज और प्रेरक रहा. लेकिन कुछ दिलचस्प यादगार मन के पृष्ठों पर आज भी चिपके हुए हैं. राजदीप सरदेसाई सर का सेशन था. जब हम भारी भरकम सिलेबस के भार में दबे पड़े थे, निशांत उस समय भी सिलेबस से आगे की चीजें पढ़ने समझने की कोशिश में लगा था. उस समय निशांत बैच का इकलौता स्टूडेंट था, जिसके पास राजदीप सरदेसाई की किताब The Election that changed India थी. राजदीप सर की वो किताब हाल ही में प्रकाशित हुई थी. इसलिए निशांत भारद्वाज के पास पूरे सेशन में अलग जगह बना पाने की कुशलता थी, राजदीप सर निशांत से इस कदर प्रभावित हुए कि खुद निशांत को बुलाया और दो चार मिनट उससे बात की और आॅटोग्राफ भी दिया.

निशांत के साथ बुक फेयर जाना, पीआर का इंटरव्यू और LUND UNIVERSITY वाला सेशन एक खास पल के तौर पर हमेशा जीवंत रहेंगे. शुरूआती दौर में लंबे बाल रखने का निशांत का शौक शायद आज भी बरकरार होगा. वैसे बालों पर हाथ फिराने की अदा की प्रतियोगिता में दुनिया भर की लड़कियां भी अपने निशांत के सामने हार मान लें!
